Thursday 7 January 2010

कमाल खान...युवा पत्रकारों का भगवान्

"कमाल खान''...ये नाम ज़हन में आते ही एक ऐसे पत्रकार का चेहरा नजरों के सामने घूमने लगता है, जो दिखने में तो शांत नज़र आता है लेकिन जब वो बोलता है तो दुनिया सुनती है...शांत आवाज़, धीमे अल्फाज़ और पीटीसी के शहंशाह के तौर पर इन्हें पत्रकारिता जगत में जाना और पहचाना जाता है...जी हाँ हम बात कर रहे है टीवी पत्रकार और NDTV इंडिया के लखनऊ संवाददाता कमाल खान की...कमाल देश के उन चुनिन्दा पत्रकारों में से एक है, जिनपर लोग आँख मूंदकर भरोसा करते है...युवा पत्रकारों के लिए वो किसी भगवान् से कम नहीं है...कई मीडिया संस्थानों में उनकी पीटीसी को पढाया जाता है...अगर कहा जाये की जहाँ से दूसरे पत्रकार सोचना बंद कर देते है वहां से कमाल खान सोचना शुरू करते है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी..

वैसे तो हर अच्छे रिपोर्टर में कोई न कोई खूबी होती है लेकिन कमाल खान की एक नहीं बल्कि कई खूबियाँ है. उनकी शानदार स्क्रिप्ट और जानदार पीटीसी का लोहा केवल पत्रकारिता जगत ही नहीं बल्कि वो लोग भी मानते है, जिनका मीडिया से कोई सरोकार नहीं है...यहाँ पर अगर में कमाल खान की पीटीसी का जिक्र न करूं तो ये लेख अधूरा माना जायेगा...हिंदी टीवी पत्रकारिता में पीटीसी का अहम् रोल माना जाता है बल्कि यूँ कहे की पीटीसी स्टोरी की जान होती है, तो गलत नहीं होगा. रवीश कुमार, विजय विद्रोही, कुमार विक्रांत आदि ऐसे कई नाम है जिनकी पीटीसी शानदार होती है...लेकिन इन सबके बीच कमाल खान पीटीसी के मामले में महाराजा है...ऐसा केवल में नहीं कह रहा हूँ जबकि कई टीवी चैनल के रहनुमा ऐसा मानते है...न्यूज़ २४ के मेनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम के मुताबिक वो रिपोर्टर की काबिलियत उसकी पीटीसी से मानते है और इस मामले में कमाल खान देश के अव्वल रिपोर्टर है...पीटीसी के अलावा कमाल की स्क्रिप्ट भी लोगों के दिलों को छू जाती है. उनका स्टोरी करने का अंदाज़ भी अलग होता है. कमाल खान की बुंदेलखंड के किसानों पर की गयी स्टोरी हो या बसपा की मुखिया बहनजी पर की गयी स्टोरी हो, सभी अपने आप में निराली थी...मदर डे पर की गयी उनकी स्टोरी और पीटीसी मेरे जहन में आज भी जीवित है...उसमे माँ के ऊपर की गयी पीटीसी का यहाँ जिक्र करूंगा...

''माँ तो जिस्म में सांसों सी रहती है,
लहू बनके रगों में बहती है,
जिन्दगी बनके हमारे दिलों में धड़कती है,
यक्ष ने युधिष्ठिर से यही पूंछा था...की इस धरती से बड़ी कौन
युधिष्ठिर ने कहा की माँ..
क्योंकि माँ इस धरती से ही बड़ी नहीं, बल्कि इस पूरी कायनात से भी बड़ी है''

ये सोच केवल कमाल खान की ही हो सकती है...

ये तो थी कमाल खान जैसी हस्ती पर चंद लायनें...वहीँ दूसरी तरफ अगर हम आज के युवा पत्रकारों की बात करें तो उनमे से ५० फीसदी ऐसे लोग है जिन्हें पीटीसी और स्क्रिप्ट के सही मायने भी नहीं पता..कैमरे पर दिखने के लिए कुछ भी कह देना उनके लिए पीटीसी है.. वही कितने ऐसे भी है जिन्हें २-३ साल रिपोर्टिंग करते हो गया लेकिन कमाल खान जैसे पत्रकारों का नाम तक नहीं जानते...खैर जो भी हो कमाल जैसे लोग कम ही पैदा होते है और हम जैसे युवा पत्रकारों के लिए वो सदा एक आदर्श है...थे और आनेवाले कई सालों तक रहेंगे.