Thursday, 29 January 2009

पब संस्कृति" की गिरफ़्त में हिन्दुस्तान...


हमारा देश अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। ऑस्ट्रेलिया, इंग्लेंड और अमेरिका जैसे यूरोपियन देश भी भारत आकर हमारी संस्कृति को अपना रहे है. लेकिन न जाने क्यों इन सबके बावजूद भी हमारी युवा पीढी पाश्चात्य सभ्यता के जाल में उलझती जा रही है. पाश्चात्य सभ्यता से मेरा मतलब दिनों-दिन छोटे होते कपड़े, रास्तों पर अश्लील हरकतें करते युवा, और इन दिनों सबसे ज्यादा बहस का मुद्दा बने पब संस्कृति से है.

आखिर ये पब संस्कृति है क्या ? पब संस्कृति को जानने से पहले पब के बारे में जानना जरूरी है, पब वो जगह है जहाँ हमारी तथाकथित युवा पीढी जाकर कम कपडों में शराब, शवाब और कबाब का मजा लेते है। इन्ही पब और डिस्को का अनुसरण पब संस्कृति कहलाता है । पब संस्कृति हमारे देश के लिए एक जटिल समस्या बनती जा रही है, जिसकी गिरफ़्त में आकर हमारी युवा पीढी अपने आपको खोखला करने में लगी है. ऐसा नही है की पब संस्कृति केवल महानगरों तक ही सीमित है, अब इसका दायरा महानगरों से निकलकर छोटे शहरों तक जा पहुँचा है.

अभी हाल ही में मंगलोर के एक पब में हुए मारपीट की घटना इस बात का ताजा उधाहरण है कि पब संस्कृति देश के छोटे शहरों के युवाओं को भी अपनी चपेट में ले चुका है। हालाँकि मारपीट की इस घटना का मै समर्थन नही कर रहा हूँ, लेकिन जिस तरीके से श्रीराम सेना ने पब में जाकर मारपीट की घटना को अंजाम दिया और इसके बाद पब संस्कृति के बारे लोगों की जो प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है, उससे ये साबित होता है की लोगों का गुस्सा इस संस्कृति के खिलाफ है और कहीं न कहीं ये गुस्सा जायज भी है .अगर हमने जल्द ही अपनी युवा पीढी को पाश्चात्य सभ्यता के चंगुल से छुटकारा नहीं दिलाया, तो इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते है और इसका ज़हर हमारी पीढी को गर्त में ढकेल सकता है.

Tuesday, 27 January 2009

राज ठाकरे और मीडिया...

राज ठाकरे को कौन नही जानता। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष है, या यूँ कहें की देश को तोड़ने वाली राजनीती के अग्रिणी नेताओं में से एक है. राज ठाकरे पिछले काफी समय से उत्तर भारतीयों पर हमले के कारण मीडिया में छाए हुए है. अभी हाल ही में नासिक और मुंबई में फ़िर से राज की सेना का कहर उत्तरभारतीयों पर बरसा है। क्या इन सबके पीछे केवल राज ठाकरे जिम्मेदार है? या फिर हमारा मीडिया भी उतना ही जिम्मेदार है जितना राज ठाकरे।

जिस तरह के आग उगलने बाले भाषण राज अपनी सभाओं में देते है उन्हें कितने लोग सुनते है, ज्यादा से ज्यादा ५००० या १००००, लेकिन मीडिया उन भाषणों को दिखाकर उसकी आवाज लाखों लोगों तक पहुंचाती है और दंगा भड़काने में राज से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. अब सबाल ये उठता है की मीडिया को राज ठाकरे का कवरेज़ करना चाहिए या नही? मेरे नजरिये से मीडिया को राज ठाकरे का बहिष्कार कर देना चाहिए, क्योकि जितना आप उसे दिखाओगे उतना ही वो भोंकेगा. अभी कुछ दिन पहले मुंबई के ठाणे इलाके हुई में एक रैली में राज के निशाने पर सबसे ज्यादा अगर कोई था, तो वो था मीडिया, राज ने रैली में न सिर्फ़ मीडिया की जमकर बखियां उधेडी, बल्कि लोगों को उन्हें मारने के लिए भी उकसाया, लेकिन इन सबके बावजूद भी मीडिया ने राज ठाकरे का कवरेज़ किया और शायद आगे भी करती रहेगी. आखिर मीडिया की ऐसी क्या मजबूरी है ,जो गाली खाकर भी राज की दुम चाटने से बाज नही आते???

Sunday, 25 January 2009

नजरिया...सही या ग़लत

नमस्कार दोस्तों, आज से मै भी ब्लॉग की दुनिया में कदम रखने जा रहा हू. शुरुआत मै अपने ब्लॉग के नाम से करने जा रहा हूँ. "नजरिया" मेरा, आपका, हम सबका.. आखिर ये नजरिया है क्या बला? हमारी सोच, हमारे सोचने का ढंग नजरिया कहलाता है. हर किसी का नजरिया समान भी नही होता.हर व्यक्ति की सोच अलग होती है, फ़िर चाहे वो सही हो या ग़लत. यहाँ पर मुझे प्रसिद्ध लेखक शिव खेडा का एक प्रसंग याद आ रहा है, एक बार एक साइंटिस्ट ने शराब के नुकसान को बताने के लिए सेमीनार आयोजित किया, जिसमे उन्होंने एक गिलास मे पानी लिया तथा दूसरे मे शराब ली. इसके बाद एक केचुआ को पहले शराब के गिलास मे डाला, तो केचुआ मर गया, बाद मे पानी वाले गिलास मे केचुआ डाला तो उसे कुछ नही हुआ . साइंटिस्ट ने उधर मौजूद लोंगो से सवाल पूछा की इससे क्या समझे? उनमे से एक आदमी ने जवाब दिया कि शराब पीने से पेट के सारे कीटाणु मर जाते है, इसलिए शराब पीना चाहिए. ये उस आदमी का अपना नजरिया था, जिसमे उसे शराब के फायेदे दिख रहे थे नुकसान नही.
अब सबाल ये उठता है कि नजरिये का कुछ दायरा होना चाहिए या नही. या फ़िर किसी भी व्यक्ति को कुछ भी सोचने या लिखने का पूरा अधिकार है. मै बचपन से सुनते आ रहा हू कि हर किसी को कुछ भी सोचने और लिखने का पूरा अधिकार है, लेकिन यदि उससे किसी कि भावना को ठेस पहुचती हो तो क्या. आप ने मशहूर पेंटर M.F. हुसैन का नाम तो जरूर सुना होगा, जो हिंदू देवी देवताओं कि अश्लील तस्वीर बनाने के मामले मे काफी विवादस्पद रह चुके है. एक बार मैं उनका इंटरव्यू सुन रहा था, जिसमे उनसे पुछा गया की आप ने हिंदू देवी देवताओं कि अश्लील तस्वीर बनाकर हिन्दुओं की भावनायों को क्यों भड़काया, तो उनका कहना था कि उसमे मेरे नजरिये से कुछ भी अश्लील नही था. आख़िर कब तक हम अपने नजरिये और सोच कि दुहाई देकर बचते रहेंगे. आखिर कब तक हम अपने नजरिये कि दुहाई देकर लोगों कि भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे. मै आप सब से जानना चाहता हु कि, इस नजरिये के बारे मै आपका नजरिया क्या है..