हमारा देश अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। ऑस्ट्रेलिया, इंग्लेंड और अमेरिका जैसे यूरोपियन देश भी भारत आकर हमारी संस्कृति को अपना रहे है. लेकिन न जाने क्यों इन सबके बावजूद भी हमारी युवा पीढी पाश्चात्य सभ्यता के जाल में उलझती जा रही है. पाश्चात्य सभ्यता से मेरा मतलब दिनों-दिन छोटे होते कपड़े, रास्तों पर अश्लील हरकतें करते युवा, और इन दिनों सबसे ज्यादा बहस का मुद्दा बने पब संस्कृति से है.
आखिर ये पब संस्कृति है क्या ? पब संस्कृति को जानने से पहले पब के बारे में जानना जरूरी है, पब वो जगह है जहाँ हमारी तथाकथित युवा पीढी जाकर कम कपडों में शराब, शवाब और कबाब का मजा लेते है। इन्ही पब और डिस्को का अनुसरण पब संस्कृति कहलाता है । पब संस्कृति हमारे देश के लिए एक जटिल समस्या बनती जा रही है, जिसकी गिरफ़्त में आकर हमारी युवा पीढी अपने आपको खोखला करने में लगी है. ऐसा नही है की पब संस्कृति केवल महानगरों तक ही सीमित है, अब इसका दायरा महानगरों से निकलकर छोटे शहरों तक जा पहुँचा है.
अभी हाल ही में मंगलोर के एक पब में हुए मारपीट की घटना इस बात का ताजा उधाहरण है कि पब संस्कृति देश के छोटे शहरों के युवाओं को भी अपनी चपेट में ले चुका है। हालाँकि मारपीट की इस घटना का मै समर्थन नही कर रहा हूँ, लेकिन जिस तरीके से श्रीराम सेना ने पब में जाकर मारपीट की घटना को अंजाम दिया और इसके बाद पब संस्कृति के बारे लोगों की जो प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है, उससे ये साबित होता है की लोगों का गुस्सा इस संस्कृति के खिलाफ है और कहीं न कहीं ये गुस्सा जायज भी है .अगर हमने जल्द ही अपनी युवा पीढी को पाश्चात्य सभ्यता के चंगुल से छुटकारा नहीं दिलाया, तो इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते है और इसका ज़हर हमारी पीढी को गर्त में ढकेल सकता है.
आखिर ये पब संस्कृति है क्या ? पब संस्कृति को जानने से पहले पब के बारे में जानना जरूरी है, पब वो जगह है जहाँ हमारी तथाकथित युवा पीढी जाकर कम कपडों में शराब, शवाब और कबाब का मजा लेते है। इन्ही पब और डिस्को का अनुसरण पब संस्कृति कहलाता है । पब संस्कृति हमारे देश के लिए एक जटिल समस्या बनती जा रही है, जिसकी गिरफ़्त में आकर हमारी युवा पीढी अपने आपको खोखला करने में लगी है. ऐसा नही है की पब संस्कृति केवल महानगरों तक ही सीमित है, अब इसका दायरा महानगरों से निकलकर छोटे शहरों तक जा पहुँचा है.
अभी हाल ही में मंगलोर के एक पब में हुए मारपीट की घटना इस बात का ताजा उधाहरण है कि पब संस्कृति देश के छोटे शहरों के युवाओं को भी अपनी चपेट में ले चुका है। हालाँकि मारपीट की इस घटना का मै समर्थन नही कर रहा हूँ, लेकिन जिस तरीके से श्रीराम सेना ने पब में जाकर मारपीट की घटना को अंजाम दिया और इसके बाद पब संस्कृति के बारे लोगों की जो प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है, उससे ये साबित होता है की लोगों का गुस्सा इस संस्कृति के खिलाफ है और कहीं न कहीं ये गुस्सा जायज भी है .अगर हमने जल्द ही अपनी युवा पीढी को पाश्चात्य सभ्यता के चंगुल से छुटकारा नहीं दिलाया, तो इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते है और इसका ज़हर हमारी पीढी को गर्त में ढकेल सकता है.
पब में बच्चों के जाने से संस्कृति नष्ट होती है लेकिन दारू के सरकारी ठेके पर पडौस वाले अंकल या खुद पिताजी के जाने पर संस्कृति नष्ट नहीं होती।
ReplyDeleteयुवा पीढी स्वतन्त्र है और वो पब में जाये य न जाये ये उसका या अधिकतम उनके घरवालों का निजी मामला है, इसमें हमारे और आपके बोलने की कोई गुंजाईश नहीं है। आप चिन्ता न करें, संस्कृति कहीं गड्ढे में नहीं जा रही है, हम युवा पब में जाकर भी इसे संभाल लेंगे।
'पाश्चात्य सभ्यता के चंगुल से छुटकारा' तो ये तालिबानी दिलवा देंगे पर इनसे छुटकारा कौन दिलवायेगा?
ReplyDeleteमारपीट की इस घटना का समर्थन नही किया जा सकता है। समस्या का समाधान बातचीत से होना चाहिये।
ReplyDeleteसंकेत जी,
ReplyDeleteआपने जो लेख लिखा है वो बढ़िया है . हमारी युवा पीढी बाकई में पाश्चात्य संस्कृती के जाल में उलझती जा रही है...
अगर पब संस्कृति का विरोध करना हैं तो सरकार का विरोध करे जो इनको लाइसेंस देती हैं । अगर शराब और सिगरेट का विरोध करना हैं तो फिर उस सरकार का विरोध करे जो इसको बढ़ावा देती हैं । घर मे कोई सिगरेट या शराब ना ले चाहे स्त्री , चाहे पुरूष , चाहे अभिभावक , चाहे बच्चे । अगर "western outfit" का विरोध करना हैं तो पुरूष भी ऑफिस कुर्ते पाजामे या धोती मे जाए और महिला भी साड़ी या सूट मे जाए यानी एक नेशनल ड्रेस कोड बनाया जाए ।पब संस्कृति या युवा पीढी को दोष देने से बेहतर हैं की व्यवस्था और कानून को सुधारे .
ReplyDeleteमुद्दा manglore मे पब संस्कृति का नहीं था , मुद्दा केवल और केवल नारी को अपमानित करने का था अगर किसी को पब बंद करवाना होता तो वो पब खली करने को कहता नाकि नारियों को मारता पीटता और उनके कपडे उतारता . आप भी मुद्दे को भटका रहे हैं . सही और सच बात पर विचार होगा तभी कुछ बात होगी
महाशय गुस्ताखी के लिए माफ़ी चाहूँगा, लेकिन आपके देश की संस्कृति की रक्षा करनेवाले ये समाज के रक्षक उस वक्त कहाँ थे, जब ये संस्कृति भारत में आए थी... और संस्कृति को बचाने का दम भरने वाले ये समाज के ठेकेदार कौनसी संस्कृति की बात करते है क्यो औरतो पर हाथ उठाना भारत की संस्कृति है... समाज के ठेकेदारों को जरा आँखे खोलकर देखना चाहिए कि वक्त के साथ परिवर्त होना ज़रूरी है...जब भी परिवर्तन की इस धारा को रोकने कि कोशिश की गयी है, तो अंज़ाम हमेशा से ही बुरा रहा है...
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