Tuesday, 24 February 2009
ऑस्कर से प्यार...मुंबई हमलों से सौतेला व्यवहार
मैं इन दोनों नेताओं की प्रतिक्रिया सुनकर हैरान नहीं हूँ लेकिन जितने जल्दी इन दोनों की प्रतिक्रियां सामने आई उससे में हैरान हुआ हूँ। दरअसल हमारे दोनों नेताओं की इतनी तेजी से प्रतिक्रिया देने पर मुझे थोड़ा आश्चर्य भी हुआ। क्योंकि जिस समय मुंबई में २६/११ के दिन देश का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हुआ था, उस दिन हमारे प्रधानमंत्री जी की प्रतिक्रिया आने में पूरे २४ घंटे लग गए थे, जबकि राष्ट्रपति महोदिया की प्रतिक्रिया तो मैंने देखी भी नही। राष्ट्रपति जी के बारे में मैं शायद में ग़लत हो सकता हूँ , लेकिन २४ घंटे तक इन दोनों की कोई प्रतिक्रिया मैंने तो चैनल पर नहीं देखी। ये तो वही बात हो गई ऑस्कर से प्यार और मुंबई हमलों से सौतेला व्यवहार। ये भी हो सकता है कि राष्ट्रपति जी को प्रतिक्रिया देने का समय ही न मिला हो और हमारे प्रिये प्रधानमंत्री जी शायद सोनिया जी के आदेश का इन्तजार कर रहे होंगे।
क्रिकेट में भारत की जीत हो या ऑस्कर में सफलताओं की बात हो दोनों जगह देश के जिम्मेदार नेता क्रेडिट लेने के लिए तैयार खड़े नज़र आते है। लेकिन जब देश के ऊपर कोई विपत्ति आती है तो उन्हें बोलने के लिए २४ घंटे लग जाते है। ऐसे में अब सवाल ये उठता है की जिन के हांथो में देश की बागडोर दी गई हो वो लोग देश की जिम्मेदारी को कब समझेंगे। सफलता पर बडबडाना और बात है लेकिन जब मुंबई और दिल्ली हमलों जैसी जटिल समस्या देश के ऊपर आती है, तो उसका समाधान निकालना अलग हो जाता है। खैर मुझे नहीं लगता मेरे बडबडाने से कुछ होगा, क्योंकि ना तो देश के नेता सुधरने वाले है और शायद ना ही ये देश।
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Friday, 20 February 2009
ब्लोगिंग भी चली देसी मीडिया की राह पर..
आज ब्लॉग जगत में भी वही सब परोसा जा रहा है, जिसके लिए हम भारतीय मीडिया की आलोचना करते है। जिस तरह से मीडिया में सेक्स को बेचा जाता है, ठीक उसी तरह ब्लॉग जगत में भी सेक्स से जुड़ी खबरे काफी तादाद में देखने को मिल रही है और ऐसे ब्लोगों पर टिप्पणियों की हो रही बरसात को देखकर लगता है, कि यहाँ भी सेक्स को तबज्जो देने वाले लोगों की कमी नही है। ब्लॉग जगत में भी मीडिया की ही तरह ख़बरों की भाषा बद से बदतर होती जा रही है, जिसका उदाहरण हम मंगलोर में हुई घटना के बारे में ब्लॉग पर देख ही चुके है। यहाँ भी टिप्पणी पाने के लिए ख़बरों को सनसनीखेज बनाया जा रहा है। एक ब्लॉग पर दिल्ली स्कूल के MMS को लेकर मीडिया की धज्जियाँ उडाई जा रहीं है, कि मीडिया लड़की की पहचान सार्वजनिक कर रही है, पर इसी तरह की एक छेड़खानी की घटना को ब्लॉग जगत भी तो बिना पहचान छिपाए चटकारे लगाकर बता रहा है। क्या उससे उस व्यक्ति की पहचान सार्वजनिक नहीं हो रही है।
अब ये सवाल उठाना तो लाज़मी है कि, क्या ब्लॉग जगत भी देसी मीडिया की राह पर नहीं जा रहा है ? मेरे नज़रिये से तो बिल्कुल ब्लॉग जगत हमारे तथाकथित मीडिया से कदम से कदम मिलकर चल रहा है। जिसे हर हाल में रोका जाना चाहिए, नहीं तो इस दौर की पत्रकारिता का सबसे सशक्त माध्यम बन कर उभर रहे ब्लॉग जगत को गर्त में जाने से कोई नहीं रोक सकता। ब्लॉग जगत में बड़े-बड़े पत्रकारों से लेकर कई बुद्धिजीवी लोग भी बैठे हुए है, मै उनके विचार जानने के साथ साथ उनसे यह आशा भी करता हूँ, कि वो भी ब्लॉग जगत के भटक रहे क़दमों को रोकने का प्रयास करेंगे।
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Sunday, 15 February 2009
युवाओं का फैशन हो गया है...नेताओं को गाली बकना।
अब सवाल ये उठता है, की नेताओं को गाली देना कितना सही है। मेरे नज़रिये से अकेले नेताओं को देश की बर्बादी के लिए जिम्मेदार ठहराना ग़लत है। देश की बर्बादी के लिए हम और हमारा युवा वर्ग भी उतना ही जिम्मेदार ,है जितने ये भ्रष्ट नेतागण, क्योंकि जब भी इन्हे चुनने की बारी आती है, तो हमारे युवा पहले तो वोट नहीं देते है और जो देते है, वो एक दारू की बोतल या फ़िर १०० रुपये के कम्बल में अपना वोट बेंच देते है और पॉँच साल तक फ़िर नेताओं को गाली देने का क्रम चालू हो जाता है। मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि इन युवाओं को जिनका राजनीति में कोई योगदान नहीं है, किसने ये हक़ दिया कि वो नेताओं को गाली दे।
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Thursday, 12 February 2009
स्टिंग ऑपरेशन...सही या ग़लत ?
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Sunday, 8 February 2009
राम...अब नहीं आएंगे काम
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Friday, 6 February 2009
काश !.. मैं भी क्रिकेटर होता
जिस तरह से IPL में क्रिकेटर बिक रहे है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि, आज अगर सबसे ज्यादा पैसा किसी धंदे में है तो वो क्रिकेट में है. तभी तो फिल्मी सितारे हों या राजनीती की गोटियाँ खेलने वाले नेता, सभी किसी न किसी रूप में क्रिकेट से जुड़ रहे है और करोड़ों के बारे न्यारे कर रहे है. वैसे हमेशा से एक बहस चली आ रही है कि असली हीरो कौन है, "क्रिकेटर" जो देश के लिए खेलते है या फ़िर परदे के "फिल्मी हीरो" जो लाखों दिलों पर राज करते है. इस बहस में हमेशा से क्रिकेटर, फिल्मी हीरो से एक कदम आगे रहे है. लेकिन जिस तरीके से क्रिकेटरों का भाव लग रहा है, वे IPL के बाज़ार में बिक रहे है उसे देखकर मन में सबाल उठता है कि, क्या बाकई में ये क्रिकेटर देश भावना के लिए खेलते है या फ़िर पैसा ही इनके लिए सबकुछ है.
जनाब पैसा बोलता है और IPL के बाजार में भी पैसा बोल रहा है. तभी तो एक - एक प्लेयर करोड़ों में बिक रहा है चाहे वो भारतीय हों या विदेशी. एक ओर जहाँ हमारा देश घोर आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है, लोंगों को नौकरियां बचाने के लिए जद्दोजहत करनी पड़ रही है, वहीँ इसे देश कि विडंबना ही कहेंगे कि दूसरी ओर क्रिकेट में लग रही बोली में करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाया जा रहा है.
खैर इस देश का तो कुछ नही हो सकता, और आप के बारे में भी मुझे नहीं मालूम, लेकिन IPL में लग रही इस बोली से एक सबक तो मैंने सीख ही लिया कि, मैं तो क्रिकेट नही खेल पाया, लेकिन अपने बच्चों को मार-मार के क्रिकेटर जरूर बनाऊंगा.
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Monday, 2 February 2009
“मीडिया”..देश के लिए खतरा !
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