Saturday, 28 November 2009
मुसलमानों की एक और करतूत...
नोबल पुरस्कार विजेता का मेडल जब्त
शांति का नोबेल जीतने वाली ईरानी महिला वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता शिरीन इबादी का मेडल ईरान सरकार ने जब्त कर लिया है। नोबल पुरस्कारों के 108 साल के इतिहास में यह पहली घटना है जब किसी नोबल विजेता का गोल्ड मेडल जब्त कर लिया गया। नार्वे के आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक यह सचमुच चौंकाने वाली बात है।
इबादी को 2003 में लोकतंत्र और शांति स्थापना के लिए किए प्रयासों के लिए नोबल दिया गया था। इसके बाद से ही ईरानी आधिकारियों की प्रताड़ना का शिकार हो रही थी। हाल ही में तीन महीने पहले तेहरान रिवाल्यूनरी कोर्ट के आदेशों के आधार पर करीब तीन सप्ताह पहले उनके मेडल को छीन लिया गया। इबादी फिलहाल लंदन में है। उन्होंने बताया कि मेडल के अलावा इस सम्मान में मिली अन्य वस्तुएं भी जब्त कर ली गई है।
इबादी का कहना है कि सरकार ने उनके बैंक खातों को भी फ्रीज कर दिया है और उनसे ईनाम में मिली राशि पर करीब चार लाख डॉलर का टैक्स दिए जाने की मांग की जा रही है। जबकि ईरानी कानून में इस तरह के पुरस्कारों को किसी भी टैक्स से मुक्त रखा गया है।
इबादी का कहना है कि वह इतनी आसानी से डरने वाली नहीं शांति स्थापना के प्रयास जारी रखेगी। उन्होंने कहा कि इस तरह की धमकियां उन्हें अपनी मातृभूमि से अलग नहीं कर सकती है। इबादी शांति का नोबल पुरस्कार जीतने वाली पहली मुस्लिम महिला है।
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Wednesday, 8 July 2009
चिट्ठाजगत कृपया मेरी समस्या का भी समाधान करें....
दरअसल कुछ दिन पहले मुझे अपने ब्लॉग पर एक्सपेरिमेंट करने की सूझी...बहुत समय से लोगों को नयी नयी थीम लगाते देख रहा था, सोचा ऐसा ही कुछ में भी करूँ। मगर वो कहते है न की अध जल गघरी छलकत जाये और मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, अधुरा ज्ञान लेकर मैंने भी थीम बदलने की कोशिश कर डाली, हालाँकि इसमें मै कुछ हद तक सफल भी हो गया था लेकिन कहते है की जब समय ख़राब होता है तो बनता काम भी बिगड़ जाता है॥वो HTML जैसा कुछ होता है, उसे बार बार बदलने से मेरा कमेन्ट साफ़ दिखना बंद हो गया. जब आप लोग कमेन्ट करने जायेंगे तो खुद आपको दिखाई दे जायेगा.
काफी दिनों से उसे ठीक करने का असफल प्रयास कर चूका हू, लेकिन अभी तक सफल नहीं हो पाया..मै ब्लॉगजगत में एक अदना सा लिक्खाड़ हूँ सो इस बारे में कुछ कम जानता हूँ...अब ये कमेन्ट बॉक्स मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा, सो थक हार कर आप लोगों से मदद की गुहार कर रहा हूँ....कृपया कमेन्ट कर मुझे उचित मार्गदर्शन करने की कोशिश करें...मै आप सब का तहे दिल से आभारी रहूँगा...
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Thursday, 11 June 2009
क्या इंडियन एक्सप्रेस की इस गलती को माफ़ किया जाना चाहिए??
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Sunday, 24 May 2009
मातोश्री में डॉन...
जो अंडरवर्ल्ड डॉन अश्विन नाइक के बारे में कम जानते है उनको मै बताना चाहूँगा, कि अश्विन नाइक गैंगवार के जन्मदाता और कभी मुंबई पर राज करने वाला अमर नाइक का भाई है और ९० के दसक में उसकी तूती बोलती थी। अश्विन के ऊपर मुंबई और महाराष्ट्र में लगभग हत्या के १६ मामले दर्ज है। अभी हाल ही में अश्विन नाइक अपनी पत्नी और पूर्व पार्षद नीता नाइक की हत्या के मामले में जेल से छूटा है। जहाँ तक बालासाहिब से उसकी मुलाकात कि बात है तो जो खबर आ रही है, उसके मुताबिक शिवसेना अश्विन नाइक को आनेवाले विधानसभा चुनावों में मनसे के काट के रूप में स्तेमाल कर सकती है, क्योंकि लोकसभा में मनसे ने शिवसेना का काफी नुकसान किया था। जबकि मुंबई के कई इलाकों में अभी भी अश्विन की धाक बरकरार है।
आनेवाले विधानसभा चुनावों में अगर अश्विन नाइक शिवसेना का प्रचार करता नज़र आया तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अब सवाल ये उठता है की क्या आने वाले समय में भी यही गुंडा मवाली हमारे देश को चलाते रहेंगे? हम इस बात को लेकर खुश है कि लोकसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी, पप्पू यादव, मुन्ना शुक्ला जैसे अपराधिक छवि के लोगों को जनता ने लोकसभा में नकार दिया, लेकिन अभी भी ४० से ज्यादा सांसद ऐसे लोकसभा में पहुंचे है जिनके ऊपर १० या उससे ज्यादा अपराधिक मामले दर्ज है. अबू सलेम, अरुण गवली और आश्विन नाइक जैसे लोग लाइन में खडे है और हम ख़ुशी मना रहे है। सबसे ज्यादा दोष हमारे कानून व्यवस्था का है जो इन लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति देता है। अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं "जब लादेन हमारे देश का प्रधानमंत्री होगा".
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Wednesday, 13 May 2009
क्या मीडिया कांग्रेस की कठपुतली है ??
कभी आपने सोचा है कि वो चाहे प्रिंट मीडिया हो या फिर इलेक्ट्रोनिक मीडिया सबके अनुसार कांग्रेस ही सरकार बना रही है। कांग्रेस को ही सबसे ज्यादा सीटें मिल रही है। हर राज्य में जहाँ बीजेपी और अन्य पार्टियाँ मजबूत है वहां भी कांग्रेस को बढ़त दिखा रहे है। मैं ये नहीं कहता की कांग्रेस सरकार नहीं बना सकती या फिर मीडिया का अनुमान सही नहीं हो सकता, लेकिन आंकडे तो कम से कम ऐसे हो जिस पर यकीन किया जा सके। हिन्दुस्तान की पब्लिक इतनी भी मूर्ख नहीं है कि उसे सही गलत आंकडों का पता ही न चलता हो। अब एक नामी अंग्रेजी अखबार को ही ले लीजिये, वो कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में १५ सीटें दिलवा रही है। अब भाई इतनी तो कांग्रेस की विधानसभा की सीटें भी नहीं है। और कांग्रेस का खुद का अनुमान भी इतना नहीं बता रहा है। एक और हिंदी चॅनल पंजाब में जहाँ बीजेपी अकाली की सरकार है वहां बीजेपी अकाली को ३ सीटें बता रही है जो मेरी तो समझ से बाहर है।
ये तो बस कुछ का अनुमान बता रहा हूँ लिस्ट काफी लम्बी है, जिसपर हसीं भी आती है और गुस्सा भी, कि सारी मीडिया किस तरह कांग्रेस की कठपुतली बन गयी है। जाहिर सी बात है सरकार अभी कांग्रेस की है तो उसकी तो चाटना ही पड़ेगा। आपको याद होगा गुजरात में सारी मीडिया मोदी को हराने में लगी हुई थी और जब परिणाम आया तो सब बगुले झाकने लगे थे। ऐसा ही कुछ पंजाब और कर्णाटक में भी हुआ था। आने वाला परिणाम जो भी हो पर इस चाटुकार मीडिया को तो हार का सामना करना ही पड़ेगा. ..अरे भाई लोग ये पब्लिक है सब जानती है।
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Thursday, 7 May 2009
क्या ये राष्ट्रगान का अपमान नहीं है ???
हमारे कानून के मुताबिक किसी भी व्यक्ति या संस्था को ये अधिकार नहीं है, की वो राष्ट्रगान के साथ खिलवाड़ कर सकें। राष्ट्रगान से खिलवाड़ राष्ट्र से खिलवाड़ जैसा है। मगर राम गोपाल वर्मा ने अपनी फिल्म रन में ऐसा ही अपराध किया है। अब रामगोपाल वर्मा को तो आप अच्छी तरह जानते है, जी हाँ ये वही फिल्मकार है, जिन्होंने रामगोपाल वर्मा की आग जैसी फिल्म बनायीं थी और सुपर फ्लॉप रही थी। उनके दिन तो अब अच्छे चल नहीं रहे है, तो उन्होंने सस्ती लोकप्रियता पाने और फिल्म को विवाद के जरिये सफल बनाने का ये आसन तरीका चुना है। और जवाब मांगने पर निपट लेने की धपकी भी दे रहे है।
दिल्ली में हुई प्रेस कांफ्रेंस में जब राम गोपाल वर्मा से इस बारे में पुछा गया तो उनका कहना था की उन्होंने कोई गलती नहीं की है और किसी ने अगर ऐतराज़ जताया तो उससे निपट भी लेंगे। इसे कहते है चोरी ऊपर से सीनाजोरी। फिल्म के बाकी कलाकार जैसे अमिताभ बच्चन इस मामले पर खामोशी की मुद्रा में दिखाई दिए। अब सवाल ये उठता है की इन २ कोडी के फिल्मकारों को किसने ये हक़ दिया की वो राष्ट्रगान का अपमान कर सके ?
आप भी सुनिए और फैसला कीजिये की क्या ये राष्ट्रगान का अपमान नहीं है??
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Sunday, 1 March 2009
फेमिली प्रॉब्लम...
चलिए फेमिली प्रॉब्लम के बारे में काफी बात हो गयी, अब असल मुद्दे पर आते है। आज सुबह ही इन्टरनेट की दुनिया में घूमते हुए एक फेमिली प्रॉब्लम से टकरा गया। एक ऐसी फेमिली प्रॉब्लम जिसके बारे में आप कभी सोच भी नहीं सकते...तो मैंने सोचा की इस विचित्र और दुनिया की सबसे बड़ी फेमिली प्रॉब्लम से मैं आपको भी रूबरू करवाता चलूँ.....
.... एक बार दो व्यक्ति एक बियर बार में बैठे थे।
......एक ने कहा...." यार.... बहुत फेमिली प्रॉब्लम है "॥
दूसरा व्यक्ति : तू पहले मेरी बात सुन.....
मैंने एक विधवा महिला से शादी की जिसकी एक लड़की थी।
कुछ दिनों बाद पता चला कि मेरे पिताजी को उस विधवा महिला की पुत्री से प्यार है ....और उन्होने इस तरह मेरी ही लड़की से शादी कर ली ...
अब मेरे पिताजी मेरे दामाद बन गए और मेरी बेटी मेरी माँ बन गयी....और मेरी ही पत्नी मेरी नानी हो गयी !!
ज्यादा प्रॉब्लम तब हुई जब जब मेरे को लड़का हुआ...अब मेरा लड़का मेरी माँ का भाई हो गया, तो इस तरह मेरा मामा हो गया .....
परिस्थिति तो तब ख़राब हुई जब मेरे पिताजी को लड़का हुआ ....मेरे पिताजी का लड़का यानी मेरा भाई मेरा ही नवासा( दोहिता ) हो गया और इस तरह मैं स्वयं का ही दादा हो गया और स्वयं का ही पोता बन गया .....
......." और तू कहता है कि तुझे फेमिली प्रॉब्लम है ....
तो भैया पढा आपने कि कितनी बड़ी फेमिली प्रॉब्लम है इन भाईसाब को...अब मत कहना कि आपकी भी फेमिली प्रॉब्लम है...
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Tuesday, 24 February 2009
ऑस्कर से प्यार...मुंबई हमलों से सौतेला व्यवहार
मैं इन दोनों नेताओं की प्रतिक्रिया सुनकर हैरान नहीं हूँ लेकिन जितने जल्दी इन दोनों की प्रतिक्रियां सामने आई उससे में हैरान हुआ हूँ। दरअसल हमारे दोनों नेताओं की इतनी तेजी से प्रतिक्रिया देने पर मुझे थोड़ा आश्चर्य भी हुआ। क्योंकि जिस समय मुंबई में २६/११ के दिन देश का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हुआ था, उस दिन हमारे प्रधानमंत्री जी की प्रतिक्रिया आने में पूरे २४ घंटे लग गए थे, जबकि राष्ट्रपति महोदिया की प्रतिक्रिया तो मैंने देखी भी नही। राष्ट्रपति जी के बारे में मैं शायद में ग़लत हो सकता हूँ , लेकिन २४ घंटे तक इन दोनों की कोई प्रतिक्रिया मैंने तो चैनल पर नहीं देखी। ये तो वही बात हो गई ऑस्कर से प्यार और मुंबई हमलों से सौतेला व्यवहार। ये भी हो सकता है कि राष्ट्रपति जी को प्रतिक्रिया देने का समय ही न मिला हो और हमारे प्रिये प्रधानमंत्री जी शायद सोनिया जी के आदेश का इन्तजार कर रहे होंगे।
क्रिकेट में भारत की जीत हो या ऑस्कर में सफलताओं की बात हो दोनों जगह देश के जिम्मेदार नेता क्रेडिट लेने के लिए तैयार खड़े नज़र आते है। लेकिन जब देश के ऊपर कोई विपत्ति आती है तो उन्हें बोलने के लिए २४ घंटे लग जाते है। ऐसे में अब सवाल ये उठता है की जिन के हांथो में देश की बागडोर दी गई हो वो लोग देश की जिम्मेदारी को कब समझेंगे। सफलता पर बडबडाना और बात है लेकिन जब मुंबई और दिल्ली हमलों जैसी जटिल समस्या देश के ऊपर आती है, तो उसका समाधान निकालना अलग हो जाता है। खैर मुझे नहीं लगता मेरे बडबडाने से कुछ होगा, क्योंकि ना तो देश के नेता सुधरने वाले है और शायद ना ही ये देश।
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Friday, 20 February 2009
ब्लोगिंग भी चली देसी मीडिया की राह पर..
आज ब्लॉग जगत में भी वही सब परोसा जा रहा है, जिसके लिए हम भारतीय मीडिया की आलोचना करते है। जिस तरह से मीडिया में सेक्स को बेचा जाता है, ठीक उसी तरह ब्लॉग जगत में भी सेक्स से जुड़ी खबरे काफी तादाद में देखने को मिल रही है और ऐसे ब्लोगों पर टिप्पणियों की हो रही बरसात को देखकर लगता है, कि यहाँ भी सेक्स को तबज्जो देने वाले लोगों की कमी नही है। ब्लॉग जगत में भी मीडिया की ही तरह ख़बरों की भाषा बद से बदतर होती जा रही है, जिसका उदाहरण हम मंगलोर में हुई घटना के बारे में ब्लॉग पर देख ही चुके है। यहाँ भी टिप्पणी पाने के लिए ख़बरों को सनसनीखेज बनाया जा रहा है। एक ब्लॉग पर दिल्ली स्कूल के MMS को लेकर मीडिया की धज्जियाँ उडाई जा रहीं है, कि मीडिया लड़की की पहचान सार्वजनिक कर रही है, पर इसी तरह की एक छेड़खानी की घटना को ब्लॉग जगत भी तो बिना पहचान छिपाए चटकारे लगाकर बता रहा है। क्या उससे उस व्यक्ति की पहचान सार्वजनिक नहीं हो रही है।
अब ये सवाल उठाना तो लाज़मी है कि, क्या ब्लॉग जगत भी देसी मीडिया की राह पर नहीं जा रहा है ? मेरे नज़रिये से तो बिल्कुल ब्लॉग जगत हमारे तथाकथित मीडिया से कदम से कदम मिलकर चल रहा है। जिसे हर हाल में रोका जाना चाहिए, नहीं तो इस दौर की पत्रकारिता का सबसे सशक्त माध्यम बन कर उभर रहे ब्लॉग जगत को गर्त में जाने से कोई नहीं रोक सकता। ब्लॉग जगत में बड़े-बड़े पत्रकारों से लेकर कई बुद्धिजीवी लोग भी बैठे हुए है, मै उनके विचार जानने के साथ साथ उनसे यह आशा भी करता हूँ, कि वो भी ब्लॉग जगत के भटक रहे क़दमों को रोकने का प्रयास करेंगे।
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Sunday, 15 February 2009
युवाओं का फैशन हो गया है...नेताओं को गाली बकना।
अब सवाल ये उठता है, की नेताओं को गाली देना कितना सही है। मेरे नज़रिये से अकेले नेताओं को देश की बर्बादी के लिए जिम्मेदार ठहराना ग़लत है। देश की बर्बादी के लिए हम और हमारा युवा वर्ग भी उतना ही जिम्मेदार ,है जितने ये भ्रष्ट नेतागण, क्योंकि जब भी इन्हे चुनने की बारी आती है, तो हमारे युवा पहले तो वोट नहीं देते है और जो देते है, वो एक दारू की बोतल या फ़िर १०० रुपये के कम्बल में अपना वोट बेंच देते है और पॉँच साल तक फ़िर नेताओं को गाली देने का क्रम चालू हो जाता है। मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि इन युवाओं को जिनका राजनीति में कोई योगदान नहीं है, किसने ये हक़ दिया कि वो नेताओं को गाली दे।
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Thursday, 12 February 2009
स्टिंग ऑपरेशन...सही या ग़लत ?
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Sunday, 8 February 2009
राम...अब नहीं आएंगे काम
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Friday, 6 February 2009
काश !.. मैं भी क्रिकेटर होता
जिस तरह से IPL में क्रिकेटर बिक रहे है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि, आज अगर सबसे ज्यादा पैसा किसी धंदे में है तो वो क्रिकेट में है. तभी तो फिल्मी सितारे हों या राजनीती की गोटियाँ खेलने वाले नेता, सभी किसी न किसी रूप में क्रिकेट से जुड़ रहे है और करोड़ों के बारे न्यारे कर रहे है. वैसे हमेशा से एक बहस चली आ रही है कि असली हीरो कौन है, "क्रिकेटर" जो देश के लिए खेलते है या फ़िर परदे के "फिल्मी हीरो" जो लाखों दिलों पर राज करते है. इस बहस में हमेशा से क्रिकेटर, फिल्मी हीरो से एक कदम आगे रहे है. लेकिन जिस तरीके से क्रिकेटरों का भाव लग रहा है, वे IPL के बाज़ार में बिक रहे है उसे देखकर मन में सबाल उठता है कि, क्या बाकई में ये क्रिकेटर देश भावना के लिए खेलते है या फ़िर पैसा ही इनके लिए सबकुछ है.
जनाब पैसा बोलता है और IPL के बाजार में भी पैसा बोल रहा है. तभी तो एक - एक प्लेयर करोड़ों में बिक रहा है चाहे वो भारतीय हों या विदेशी. एक ओर जहाँ हमारा देश घोर आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है, लोंगों को नौकरियां बचाने के लिए जद्दोजहत करनी पड़ रही है, वहीँ इसे देश कि विडंबना ही कहेंगे कि दूसरी ओर क्रिकेट में लग रही बोली में करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाया जा रहा है.
खैर इस देश का तो कुछ नही हो सकता, और आप के बारे में भी मुझे नहीं मालूम, लेकिन IPL में लग रही इस बोली से एक सबक तो मैंने सीख ही लिया कि, मैं तो क्रिकेट नही खेल पाया, लेकिन अपने बच्चों को मार-मार के क्रिकेटर जरूर बनाऊंगा.
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Monday, 2 February 2009
“मीडिया”..देश के लिए खतरा !
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Thursday, 29 January 2009
पब संस्कृति" की गिरफ़्त में हिन्दुस्तान...
आखिर ये पब संस्कृति है क्या ? पब संस्कृति को जानने से पहले पब के बारे में जानना जरूरी है, पब वो जगह है जहाँ हमारी तथाकथित युवा पीढी जाकर कम कपडों में शराब, शवाब और कबाब का मजा लेते है। इन्ही पब और डिस्को का अनुसरण पब संस्कृति कहलाता है । पब संस्कृति हमारे देश के लिए एक जटिल समस्या बनती जा रही है, जिसकी गिरफ़्त में आकर हमारी युवा पीढी अपने आपको खोखला करने में लगी है. ऐसा नही है की पब संस्कृति केवल महानगरों तक ही सीमित है, अब इसका दायरा महानगरों से निकलकर छोटे शहरों तक जा पहुँचा है.
अभी हाल ही में मंगलोर के एक पब में हुए मारपीट की घटना इस बात का ताजा उधाहरण है कि पब संस्कृति देश के छोटे शहरों के युवाओं को भी अपनी चपेट में ले चुका है। हालाँकि मारपीट की इस घटना का मै समर्थन नही कर रहा हूँ, लेकिन जिस तरीके से श्रीराम सेना ने पब में जाकर मारपीट की घटना को अंजाम दिया और इसके बाद पब संस्कृति के बारे लोगों की जो प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है, उससे ये साबित होता है की लोगों का गुस्सा इस संस्कृति के खिलाफ है और कहीं न कहीं ये गुस्सा जायज भी है .अगर हमने जल्द ही अपनी युवा पीढी को पाश्चात्य सभ्यता के चंगुल से छुटकारा नहीं दिलाया, तो इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते है और इसका ज़हर हमारी पीढी को गर्त में ढकेल सकता है.
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Tuesday, 27 January 2009
राज ठाकरे और मीडिया...
जिस तरह के आग उगलने बाले भाषण राज अपनी सभाओं में देते है उन्हें कितने लोग सुनते है, ज्यादा से ज्यादा ५००० या १००००, लेकिन मीडिया उन भाषणों को दिखाकर उसकी आवाज लाखों लोगों तक पहुंचाती है और दंगा भड़काने में राज से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. अब सबाल ये उठता है की मीडिया को राज ठाकरे का कवरेज़ करना चाहिए या नही? मेरे नजरिये से मीडिया को राज ठाकरे का बहिष्कार कर देना चाहिए, क्योकि जितना आप उसे दिखाओगे उतना ही वो भोंकेगा. अभी कुछ दिन पहले मुंबई के ठाणे इलाके हुई में एक रैली में राज के निशाने पर सबसे ज्यादा अगर कोई था, तो वो था मीडिया, राज ने रैली में न सिर्फ़ मीडिया की जमकर बखियां उधेडी, बल्कि लोगों को उन्हें मारने के लिए भी उकसाया, लेकिन इन सबके बावजूद भी मीडिया ने राज ठाकरे का कवरेज़ किया और शायद आगे भी करती रहेगी. आखिर मीडिया की ऐसी क्या मजबूरी है ,जो गाली खाकर भी राज की दुम चाटने से बाज नही आते???
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Sunday, 25 January 2009
नजरिया...सही या ग़लत
अब सबाल ये उठता है कि नजरिये का कुछ दायरा होना चाहिए या नही. या फ़िर किसी भी व्यक्ति को कुछ भी सोचने या लिखने का पूरा अधिकार है. मै बचपन से सुनते आ रहा हू कि हर किसी को कुछ भी सोचने और लिखने का पूरा अधिकार है, लेकिन यदि उससे किसी कि भावना को ठेस पहुचती हो तो क्या. आप ने मशहूर पेंटर M.F. हुसैन का नाम तो जरूर सुना होगा, जो हिंदू देवी देवताओं कि अश्लील तस्वीर बनाने के मामले मे काफी विवादस्पद रह चुके है. एक बार मैं उनका इंटरव्यू सुन रहा था, जिसमे उनसे पुछा गया की आप ने हिंदू देवी देवताओं कि अश्लील तस्वीर बनाकर हिन्दुओं की भावनायों को क्यों भड़काया, तो उनका कहना था कि उसमे मेरे नजरिये से कुछ भी अश्लील नही था. आख़िर कब तक हम अपने नजरिये और सोच कि दुहाई देकर बचते रहेंगे. आखिर कब तक हम अपने नजरिये कि दुहाई देकर लोगों कि भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे. मै आप सब से जानना चाहता हु कि, इस नजरिये के बारे मै आपका नजरिया क्या है..
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